Global Warming Ka Badhta Khatra (photo credit: social media)
ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता खतरा: वर्तमान में, पूरी दुनिया एक ऐसे संकट का सामना कर रही है जो न केवल पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है, बल्कि मानव जीवन पर भी गंभीर असर डाल रहा है। यह संकट है - 'ग्लोबल वार्मिंग', जो पृथ्वी के तापमान में असामान्य और निरंतर वृद्धि का संकेत है। यह खतरा प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और इसके दुष्प्रभाव विश्व के हर कोने में महसूस किए जा सकते हैं।
भारत में गेहूं की पैदावार में गिरावट
ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों के बीच, इस लेख में हम भारत में गेहूं की उत्पादन में आई कमी पर चर्चा करेंगे। बढ़ते तापमान और मौसम में बदलाव के कारण गेहूं की वृद्धि और उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर गेहूं की पैदावार में लगभग 10% की कमी आई है। यह अध्ययन 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में जलवायु और कृषि से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है, जिससे यह निष्कर्ष निकला है कि बढ़ते तापमान और सूखे की घटनाओं के कारण गेहूं, मक्का और जौ जैसी फसलों की पैदावार में भारी कमी आ रही है।
भारत में गेहूं की कम पैदावार के कारण
भारत में गेहूं की कम पैदावार में दोषी कौन
भारत, विशेषकर उत्तर भारत का इंडो-गैंगेटिक प्लेन, गेहूं उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र है। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि भारत में गेहूं की पैदावार में लगभग 6% से 25% तक की कमी आ सकती है। इसका मुख्य कारण बढ़ती गर्मी के कारण सूखे की घटनाओं में वृद्धि और हवा में नमी की कमी है।
जलवायु परिवर्तन से फसलों पर बढ़ा तनाव जलवायु परिवर्तन से फसलों पर बढ़ा तनाव
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि फसलों में बढ़ते तनाव का सबसे बड़ा कारण प्रतिदिन तापमान में वृद्धि और हवा में सूखेपन का बढ़ना है। दुनिया के प्रमुख कृषि क्षेत्रों में यह वृद्धि देखी गई है। कई क्षेत्रों में पैदावार का मौसम पिछले 50 वर्षों की तुलना में कहीं अधिक गर्म हो चुका है।
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण भारत में गेहूं की पैदावार में गिरावट आने की कई वजहें हैं:
- बढ़ता तापमान बड़ा कारण: गेहूं एक रबी फसल है और अधिक तापमान से इसके विकास में रुकावट आती है, जिससे अनाज उत्पादन और गुणवत्ता में कमी आती है।
- मौसम में परिवर्तन: ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण मौसम में तेजी से बदलाव हो रहे हैं, जिससे वर्षा में कमी आई है और सूखे की स्थिति बढ़ रही है, जो गेहूं की पैदावार के लिए अत्यंत हानिकारक है।
- कीटों और बीमारियों का बढ़ता खतरा: ग्लोबल वॉर्मिंग से गेहूं को हानि पहुंचाने वाले कीटों और बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता
शोधकर्ताओं के अनुसार, कई मायनों में जो परिवर्तन किसान अनुभव कर रहे हैं, वे जलवायु मॉडल की भविष्यवाणियों के अनुसार हैं। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में जैसे यूरोप और चीन, हवा में सूखापन का स्तर जितना अधिक हुआ है, उसका अनुमान जलवायु मॉडल भी नहीं लगा सके। वहीं, अमेरिका के मिडवेस्ट इलाके में जितनी गर्मी और सूखे का अनुमान लगाया गया था, अब तक धरती पर उतना असर नहीं देखा गया।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि मॉडल में देखी गई खामियों का प्रभाव कृषि में जलवायु अनुकूलन से जुड़ी योजनाओं को बनाने पर भी पड़ रहा है। जैसे कि, पहले फसलों का समय बढ़ाने के लिए ऐसी किस्में उगाने का प्रयास किया गया जो देर से पकती हैं। लेकिन अब सूखे की बढ़ती दिक्कतें इन योजनाओं को हानि पहुंचा रही हैं, क्योंकि मॉडल उस सूखे को ठीक से नहीं दिखा पाए।
भारत में कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
भारत में कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल गेहूं तक सीमित नहीं है। राष्ट्रीय नवाचार जलवायु लचीला कृषि (NICRA) के अनुसार, वर्ष 2050 और 2080 तक बारिश आधारित चावल की पैदावार में लगभग 2.5% से भी कम की कमी हो सकती है, जबकि सिंचित चावल की पैदावार में क्रमशः 7% और 10% की गिरावट की आशंका है। मक्का की पैदावार में करीब 18% से 23% तक की कमी हो सकती है।
खाद्य सुरक्षा और आर्थिक असर
खाद्य सुरक्षा और आर्थिक असर
भारत की लगभग 56% से अधिक आबादी कृषि पर पूरी तरह निर्भर है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों की पैदावार में आई कमी से खाद्य सुरक्षा पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2100 तक अपनी GDP का लगभग 3% से 10% तक का भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है और वर्ष 2040 तक गरीबी दर में 3.5% की वृद्धि हो सकती है।
ग्लोबल वार्मिंग का खतरा क्यों बढ़ रहा ग्लोबल वार्मिंग का खतरा
ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण है – ग्रीनहाउस गैस (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) का बढ़ता उत्सर्जन। ये गैसें वायुमंडल में गर्मी को फंसा लेती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है। इन गैसों का उत्सर्जन मुख्य रूप से औद्योगीकरण, वाहनों से निकलने वाला धुआं, जंगलों की लगातार कटाई और कोयले व तेल जैसे जीवाश्म ईंधनों के अधिक उपयोग से होता है।
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